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                                                                " बह गई हो तुम  "

नारी है वो .....बह जाती है माँ बाप के सपनो पर , किसी अजनबी के हसरतों पर .......जी हाँ ब्याह दी जाती है फिर किसी किसी की विरासत को कंधे पर लेकर सारा जीवन वो बहती ही रहती है ....
              बिहार बाढ़ के समय सोशल मीडिया पर घूमती एक तस्वीर ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया ...गले तक के पानी मे डूबी घूंघट किये ...किसी की विरासत को लिए , अपनी ममता के आंचल में समेटे बहती जल धारा से निकल रही है ....
      क्या कोई भी कल्पना कर सकता है मृत्यु को सामने देखकर भी वो आज किससे अपनी लाज छुपा रही है ...किसकी आस बचा रही है ?
           घर मे उछलती कूदती  नन्ही सी जान  को कैसे अपनी मृत्यु से ज्यादा अपनी लज्जा प्यारी हो जाती है ?
  क्यों ?..किसी की पीढियी को जीवित रखने हेतु वो जल धारा से दुश्मनी मोल ले रही है ।
   क्या हम आधुनिक महिलाओं से इनकी तुलना कर सकते हैं । नेल पेंट का shade न मिले तो it's not working की Genration के भाव वहाँ किस लेवल पर दम तोड़ देंगे कहना मुश्किल है ।

    जयशंकर प्रसाद जी की लेखनी भी नारी पर आके अपनी तीक्ष्णता त्याग देती है सारे पैमाने बेकार साबित होते हैं धरती पर जीवित सबसे सुंदर रचना के मनोभाव समझने में और लेखनी बोल उठती है ...

  " नारी तुम केवल श्रद्धा हो ..पीयूष स्त्रोत सी बहा करो "

परंतु आश्चर्य इस बात का है कि आज भी 'बह गई हो तुम ' कहने वाले लोग प्रासंगिक कैसे है ?
     कब ये धरती मृत्यु को घूंघट के लाज से ऊपर रखेगी ?
कब फिर आइनों में लोग अपने नजर की बेवकूफियां देखेंगे ?
    कब ये शताब्दी नारी के comfort zone  में  बहना सीखेगी ....
                                 

# stupidGenius



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